National Maritime Heritage Complex
लोथल में 4,500 करोड़ की लागत से नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स बना जा रहा है, जिसमें पूरा प्रोजेक्ट भारत के 5,000 साल पुराने इतिहास को दिखाएगा। आज, केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया ने इस परियोजना की समीक्षा की, जिसे लोथल के राष्ट्रीय समुद्री विरासत परिसर में बनाया जा रहा है। इसमें दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री संग्रहालय शामिल होगा, जो गुजरात को विश्व के सबसे बड़े समुद्री संग्रहालय के रूप में परिचित कराएगा। साथ ही, 4,500 करोड़ के इस परियोजना में लोथल में दुनिया के सबसे ऊँचे लाइट हाउस और अंडरवाटर म्यूजियम का निर्माण हो रहा है, जो न केवल भारतीय समुद्री विरासत को प्रस्तुत करेगा बल्कि देश के मजबूत समुद्री इतिहास और समृद्धि से भरा हुआ होगा। इस परियोजना से स्थानीय लोगों को रोजगार का भी अवसर होगा और गुजरात के पर्यटन का विकास होगा।
मंत्री मनसुख मंडाविया ने न्यूज मीडिया से कहा कि इस परियोजना में 4,500 करोड़ की लागत से लोथल में नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स बनेगा, जिससे भारत के 5,000 साल पहले के समुद्री व्यापार का इतिहास दुनिया को प्रकट होगा। इसमें लोगों को 3 दिन में पूरा परिसर देखने का अवसर मिलेगा और वे 5,000 साल पुराने कपड़े पहनेंगे, जिसमें सिक्के और रुपये का उपयोग किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि भारत के समुद्र से जुड़े 12 राज्यों का अलग-अलग इतिहास है, और यह इतिहास इस परियोजना में दिखाया जाएगा, जिसमें तटीय राज्यों के लिए अलग-अलग गैलरीज बनाई जाएंगी, साथ ही नौसेना और वायु सेना की भी गैलरीज होंगी। इस परियोजना का महत्वपूर्ण हिस्सा एक 77 मीटर लंबा लाइट हाउस होगा, जिससे 80 किमी तक की दूरी तक रोशनी की जाएगी, बनाए जा रहे स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के बाद यह गुजरात का दूसरा सबसे बड़ा पर्यटन स्थल बनेगा। इसे जनवरी तक के कुछ चरणों में जनता के लिए खोला
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लोथल ऐतिहासिक स्थल के बारे में जानकारी
लोथल अहमदाबाद जिले के ढोलका तालुका के सरगवाला गाँव में स्थित एक प्राचीन स्थल है. लोथल शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मृतकों का स्थान इस स्थल की खुदाई डॉ. एस. आर. राव ने 1955-62 ने हड़प्पा शहर (लगभग 2500-1900 ईसा पूर्व) के कई संरचनात्मक अवशेषों का पता लगाया.
लोथल से करीब 4,500 साल पहले समुद्री व्यापार बड़े स्तर पर होता था. 1954-55 ई. में यहाँ पर खोदाई हुई थी. यह खोदाई रंगनाथ राव के नेतृत्व में की गई, जिसमे समुद्री व्यापार के प्रमाण मिले थे.
खोदाई में लोथल बन्दरगाह मिला था. बन्दरगाह में मिस्र तथा मेसोपोटामिया से बड़े व्यापारिक जहाज आते जाते थे. यहाँ से मोती व कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका आदि में भेजे जाते थे.
● मोहनजोदड़ो की तरह लोथल का भी अर्थ है, मुर्दों का टीला. लोथल खंभात की खाड़ी के पास भोगावो और साबरमती नदियों के बीच स्थित है.
सबसे पहले एक आयताकार बेसिन, जिसे डॉकयार्ड कहा जाता था, दिखाई देता है. 218 मीटर लम्बा और 37 मीटर चौड़ा यह बेसिन चारों तरफ से पक्की ईंटों से घिरा हुआ है. इसमें स्लूस गेट और इनलेट ( Sluice Gate & Inlet) के लिए जगह छोड़ी गई है.
> पूरी बस्ती को एक गढ़ या एक्रोपोलिस और निचले शहर में विभाजित किया गया था, जो पश्चिमी तरफ 13 मीटर मोटी मिट्टी की ईंट की दीवार से बाढ़ से सुरक्षित थे. प्रमुख एक्रोपोलिस में रहते थे, जहाँ 3 मीटर ऊँचे प्लेटफार्मों पर मकान बनाए गए थे और सभी पवित्र सुविधाओं स्नानघर, भूमिगत नालियाँ और पीने योग्य पानी के लिए एक कुआं प्रदान किया गया था.
निचला शहर दो क्षेत्रों में विभाजित था. मुख्य वाणिज्यिक केन्द्र जिसमें शिल्पकार रहते थे और अन्य आवासीय क्षेत्र है. सबसे उत्कृष्ट अवशेष एक बड़े टैंक हैं जिसे डॉक और गोदाम के रूप में पहचाना जाता है.
★ शौचालय और लोटे जैसे जार मिलने से यह पता चलता है कि स्वच्छता पर पर्याप्त जोर दिया जाता था.
» इसके बाद एक प्राचीन कुआँ और एक भंडारगृह के अवशेष देखने को मिलते हैं. ऐसा लगता है जैसे यह शहर का ऊपरी हिस्सा या नगरकोट (Citadel) है.
» लोथल की खोदाई में तराजू मिला था. इससे भी यह प्रमाण मिलता है की सिंधु घाटी सभ्यता व्यापारिक सभ्यता थी. सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन गेहूँ और जौ था. उस दौर के लोग मीठे के लिए शहद खाया करते थे.
● हड़प्पा समुद्री व्यापार का प्रमुख केन्द्र था लो थल यहाँ पर अर्द्ध कीमती रत्नों, टेराकोटा, सोने आदि से बने मनके मोती सुमेर (आधुनिक इराक), बहरीन और ईरान जैसे क्षेत्रों में भी लोकप्रिय थे.
• लोथल में मनके मोती बनाने वाले बेहद कुशल थे. यहाँ आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के संग्रहालय में लोथल में मिले मोती मनके रखे गए हैं